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सोमवार, 13 मई 2024

मधवी लता: भाजपा उम्मीदवार के सवाल ने मुस्लिमों में उत्पन्न किया विवाद

मई 13, 2024 0

भाजपा ने हैदराबाद नगर निगम चुनावों में मधवी लता को उम्मीदवार के रूप में उतारा है। यह चुनाव एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का माध्यम बन सकता है, लेकिन इसके साथ ही कुछ विवाद भी जुड़े हैं। एक समाचार पत्र के अनुसार, एक भाजपा नेता ने मुस्लिम निवासियों से सवाल किया, "मधवी लता कौन है?" इस संबंध में कई सवाल और चर्चाएं उत्पन्न हो रही हैं।


मधवी लता एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री और समाजसेवी हैं। उन्होंने तेलुगु, तमिल, हिंदी, और कन्नड़ फिल्म उद्योग में कई फिल्मों में काम किया है। उन्होंने भारतीय समाज के लिए कई कार्यक्रमों और परियोजनाओं में भाग लिया है।


यहाँ तक कि, मधवी लता ने अपने समाजसेवा कार्यों के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। वे एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अपने कार्यों से समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही हैं।


इसके बावजूद, भाजपा नेता द्वारा पूछे गए इस सवाल का उद्दीपन अद्यतन राजनीतिक माहौल और समाज में विवाद बन गया है। इसे लेकर कई लोगों ने आपत्ति जताई है, क्योंकि ऐसा पूछना समाज में एक अलगाव का संकेत कर सकता है।


इस घटना ने विवाद बढ़ा दिया है और लोगों के बीच राजनीतिक विवादों को भी उत्पन्न किया है। इससे भारतीय राजनीति में एक नया मुद्दा उत्पन्न हुआ है और लोग अपने धार्मिक और सामाजिक पहचान के आधार पर चुनाव करने के पक्ष और विरोध में विभाजित हो रहे हैं।


सारांश में, मधवी लता एक जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री और समाजसेवी हैं, जिन्होंने अपने कामों से समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त की है। लेकिन उनकी भाजपा उम्मीदवार के रूप में उत्थान के बावजूद, उन्हें विवादों का सामना करना पड़ रहा है।

मंगलवार, 7 मई 2024

झारखंड मंत्री आलमगीर आलम के सचिव की ED गिरफ्तारी: स्कैंडल में और भी अधिकारियों को किया गया गिरफ्तार

मई 07, 2024 0

अंकुरित विनामूल्यकरण डिरेक्टरेट (ED) ने झारखंड के कुछ महत्वपूर्ण नेताओं और अधिकारियों पर धारा 68-ए के तहत मुकदमे दर्ज किए हैं। इसमें झारखंड मंत्री आलमगीर आलम के सचिव संजीव लाल को भी गिरफ्तार किया गया है।


झारखंड में इस मुद्दे की चर्चा तेज है, क्योंकि यह राज्य की सरकार को घेर रहा है। इस मामले में अधिक जानकारी के लिए, निम्नलिखित लेख में हम इस मामले के बारे में संपूर्ण विवरण प्रस्तुत करेंगे।


झारखंड मंत्री के सचिव की गिरफ्तारी:


झारखंड के मंत्री आलमगीर आलम के सचिव संजीव लाल को गिरफ्तार किया गया है। उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया है और ED द्वारा जांच किया जा रहा है। इसके अलावा, इस मामले में और अन्य अधिकारियों को भी गिरफ्तार किया गया है।


घटना का पृष्ठभूमि:


झारखंड में इस मुद्दे का सारा मामला कुछ समय से चल रहा है। राज्य में विभिन्न राजनीतिक दलों ने इसे गंभीरता से लिया है और सरकार को जवाब देने की मांग की है। इस मुद्दे को लेकर राज्य में विरोधी दलों का विरोध भी देखा जा रहा है।


जांच के दौरान बड़ा खुलासा:


इस मुद्दे के दौरान, ED ने कई बड़े खुलासे किए हैं। इसके अलावा, उन्होंने झारखंड के कई अधिकारियों के साथ मिलकर कई अन्य राजनीतिक दलों की गतिविधियों के बारे में भी सार्वजनिक रूप से चर्चा की है।


झारखंड मंत्री आलमगीर आलम के सचिव संजीव लाल की गिरफ्तारी ED की जांच के बाद हुई है। इस मुद्दे को लेकर राज्य में राजनीतिक हलचल है और इसे लेकर कई अन्य राजनीतिक दलों का विरोध भी हो रहा है।

सोमवार, 6 मई 2024

राधिका खेड़ा के दावे पर गंभीरता से विचार: कांग्रेस ने उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए गठित की जांच कमेटी

मई 06, 2024 0


 भारतीय राजनीति में गर्माहट का माहौल हमेशा से रहा है, और हाल ही में किसी ने इस माहौल के बारे में एक गंभीर दावा किया है। कांग्रेस पार्टी की सदस्य राधिका खेड़ा ने अपने एक बयान में दावा किया है कि उन्हें किसी अनजान व्यक्ति द्वारा उत्पीड़ित किया गया था, और उन्हें 'मुम' बनाया जाने की सलाह दी गई थी। यह दावा राजनीतिक दलों के बीच खींचाव और बहस की बातें खड़ी कर गया है।


राधिका खेड़ा ने अपने बयान में कहा कि उन्हें अपनी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता द्वारा उत्पीड़ित किया गया था। उन्होंने इस विवादित घटना को अपने सामाजिक मीडिया खातों के माध्यम से साझा किया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें तत्काल समर्थन का सामना किया गया, और यह मुद्दा सार्वजनिक रूप से चर्चा का विषय बन गया।


खेड़ा ने कहा कि उन्हें उस नेता द्वारा अधिकारिक तौर पर धमकी दी गई थी कि वह उनके विरुद्ध कठोर कदम उठा सकते हैं, और इसलिए उन्हें चुपचाप रहने का सुझाव दिया गया था। उन्होंने इसके खिलाफ मुद्दों को उठाने का निर्णय लिया, जिससे यह मुद्दा समाज के सामने आया।


इस मामले में गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, कांग्रेस पार्टी ने इस घटना की जांच के लिए जांच कमेटी का गठन किया है। इसके अलावा, समाज के अन्य क्षेत्रों में भी इस मुद्दे पर विभिन्न राय व्यक्त की जा रही है।


यह मामला न केवल राजनीतिक मामला है, बल्कि यह एक महिला के साथ हो रहे अनुचित व्यवहार के प्रकटीकरण का भी मामला है। इसके बारे में समाज में चर्चा हो रही है कि कैसे महिलाओं को इस तरह के उत्पीड़न से निपटना चाहिए, और कैसे ऐसे मामलों को रोका जा सकता है।


इस घटना के बाद, कई महिला समर्थक और समाजसेवी संगठनों ने इस मामले की जांच की मांग की है, और इस मुद्दे पर कार्रवाई की मांग की है। वे चाहते हैं कि समाज इस मामले को गंभीरता से लेकर, और महिलाओं के साथ इस तरह के व्यवहार को नहीं बर्दाश्त करता।


इस तरह के मामलों का ध्यान रखना आवश्यक है ताकि समाज में सभी लोगों को समान और सुरक्षित महसूस हो सके। इससे न केवल न्याय की भावना बनी रहेगी, बल्कि महिलाओं को उनकी सुरक्षा और सम्मान की भावना में भी सुधार होगा।

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

"अमित शाह और ममता बनर्जी के बीच पश्चिम बंगाल नौकरियों के समाप्त होने पर झगड़ा: राजनीतिक तकरार का सच"

अप्रैल 24, 2024 0

पश्चिम बंगाल के राजनीतिक संघर्ष का एक नया मोड़ आया है, जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच नौकरियों के समाप्त होने पर एक संवाद हुआ। इस विवाद में, राजनीतिक दलों के बीच तनाव बढ़ा है और पश्चिम बंगाल के नौकरियों के बारे में संघर्ष चरम पर है। यहां हम इस विवाद की जानकारी और उसके परिणामों को विस्तार से विश्लेषण करेंगे।


अमित शाह और ममता बनर्जी के बीच विवाद:


पश्चिम बंगाल के नौकरियों के समाप्त होने पर अमित शाह और ममता बनर्जी के बीच तनाव बढ़ा है। अमित शाह ने बताया कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को नौकरियों को खोलने का सुझाव दिया है, लेकिन ममता बनर्जी ने इसे अस्वीकार किया। इस विवाद के बीच, पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दलों के बीच बहस और टकराव बढ़ा है।


नौकरियों के समाप्त होने का प्रभाव:


पश्चिम बंगाल में नौकरियों के समाप्त होने का प्रभाव लोगों के जीवन पर गहरा पड़ा है। इससे अनेक परिवारों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है और लोगों की आत्मसमर्था पर प्रभाव पड़ा है। नौकरियों के समाप्त होने से पश्चिम बंगाल के अनेक युवा बेरोजगार हो गए हैं और उन्हें आर्थिक सहारा की आवश्यकता हो रही है।


नौकरियों के समाप्त होने के पीछे के कारण:


नौकरियों के समाप्त होने के पीछे के कारणों में राजनीतिक और आर्थिक कारण शामिल हैं। अमित शाह के अनुसार, पश्चिम बंगाल में नौकरियों के समाप्त होने का कारण पश्चिम बंगाल सरकार की लापरवाही और विपक्षी दलों की अव्यवस्था है।


समापन:


पश्चिम बंगाल में नौकरियों के समाप्त होने का विवाद राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर गहरा है। इससे लोगों के जीवन पर असर पड़ा है और राजनीतिक दलों के बीच टकराव बढ़ा है। इस विवाद का समाधान मिलना महत्वपूर्ण ह


ै ताकि लोगों को न्याय मिल सके और राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

"कांग्रेस प्रधानमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया: राजनीतिक और सामाजिक विवाद का शिकार"

अप्रैल 22, 2024 0



वर्तमान समय में, भारतीय राजनीति में एक विवादित बयान ने चर्चा का केंद्र बना है, जब प्रधानमंत्री ने एक घटना में कांग्रेस पार्टी को लेकर एक बड़ा आरोप लगाया। इस बयान के अनुसार, कांग्रेस पार्टी मुस्लिमों के बीच लोगों की संपत्ति और सोना बांटने का वायदा कर रही है। यह विवादित बयान न केवल राजनीतिक वातावरण को गरमाने का कारण बना है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक विवादों को भी उत्पन्न किया है।


कांग्रेस का ऐलान: प्रधानमंत्री के बयान के तत्काल बाद, कांग्रेस पार्टी ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए एक आधिकारिक बयान जारी किया। उन्होंने यह अविश्वसनीय बताया और इसे नकारा कि कांग्रेस ने ऐसा कोई वादा नहीं किया है या किसी धर्म के समर्थकों के बीच किसी भी प्रकार की संपत्ति या सोना का बांटवारा किया है।


राजनीतिक धारा: यह बयान न केवल राजनीतिक वातावरण को गरमाने का कारण बना है, बल्कि इसने सामाजिक और धार्मिक विवादों को भी उत्पन्न किया है। कुछ राजनीतिक दलों ने इसे उठाकर इसे एक चुनावी मुद्दा बनाया है, जबकि कुछ अन्य उन्हें नकारते हुए इसे नकार देते हैं।


विवाद और सामाजिक प्रतिक्रिया: यह बयान न केवल राजनीतिक वातावरण को गरमाने का कारण बना है, बल्कि इसने सामाजिक और धार्मिक विवादों को भी उत्पन्न किया है। कुछ लोगों ने इसे धार्मिकता के खिलाफ एक हमला माना है, जबकि कुछ अन्य लोग इसे एक राजनीतिक खेल के तौर पर देख रहे हैं।


समाप्ति: इस विवादित बयान ने राजनीतिक और सामाजिक धारा को गरमाने का कारण बना है। यह साफ करता है कि राजनीति में धर्म के मुद्दे को अविश्वसनीय रूप से उठाने की चुनौती है और सामाजिक एवं धार्मिक सामंजस्य को बनाए रखने की आवश्यकता है।

बुधवार, 10 अप्रैल 2024

भाजपा चंडीगढ़ में किरण खेर की जगह संजय टंडन को चुनने के बाद राजनीतिक हलचलें

अप्रैल 10, 2024 0


 भाजपा ने चंडीगढ़ में संजय टंडन को किरण खेर के स्थान पर चुना


भाजपा ने हाल ही में चंडीगढ़ सीट से उपचुनाव के लिए प्रत्याशी का चयन किया है और इस चयन में किरण खेर के बजाय संजय टंडन का नाम आया है। यह घटना राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर विवाद का विषय बन गई है और इसने राजनीतिक दलों के बीच गहरी उलझन उत्पन्न की है।


किरण खेर, जो पूर्वी चंडीगढ़ सीट से भाजपा के उम्मीदवार रही हैं, एक जानी-मानी अभिनेत्री और सांसद हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में चंडीगढ़ के लिए कई विकास कार्य किए हैं और उनकी नेतृत्व में नगर में कई परियोजनाओं का विकास हुआ है। लेकिन इस बार भाजपा ने उन्हें उपचुनाव के लिए नहीं चुना और इस जगह संजय टंडन को मंजूरी दी।


संजय टंडन एक पूर्व चंडीगढ़ विधायक हैं और उन्हें चंडीगढ़ में विकास के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा बनाई है और उनका चयन भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम है।


किरण खेर के प्रति भाजपा की निर्धारितता के बावजूद इस चयन का उद्देश्य कई प्रश्नों को उत्पन्न कर रहा है। कई लोग इसे राजनीतिक समीकरण के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ लोग इसे पारिवारिक राजनीति के परिणाम के रूप में भी समझ रहे हैं।


चंडीगढ़ सीट राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह एक संघीय राज्य की राजधानी है और इसका प्रतिनिधित्व करना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अभियान होता है। इसलिए, इस सीट के लिए उम्मीदवारों का चयन ध्यानपूर्वक किया जाता है और राजनीतिक दलों के लिए इसका चुनाव एक महत्वपूर्ण रणनीतिक फैसला होता है।


संजय टंडन के चयन के बाद भी भाजपा के चुनावी रणनीति पर कई सवाल उठ रहे हैं और यह चयन चंडीगढ़ के राजनीतिक स्तर पर कुछ नई सवालों को उत्पन्न कर सकता है। इस उपचुनाव में किरण खेर के प्रति भाजपा की निर्धारितता के बावजूद संजय टंडन का चयन क्यों हुआ और इसके पीछे कौन-कौन से राजनीतिक रहस्य हैं, यह बड़ा सवाल है।


इस चयन के बाद, चंडीगढ़ सीट पर उपचुनाव में किरण खेर और संजय टंडन के बीच एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुकाबला होने वाला है। यह उपचुनाव चंडीगढ़ की राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण होगा और इसमें दलों की रणनीति, जनसमर्थन और उम्मीदवारों के प्रति जनता के विश्वास की परीक्षा होगी।

मंगलवार, 2 अप्रैल 2024

AAP नेता आतिशी का ED के खिलाफ दावा: राजनीतिक घमासान या सच्चाई?

अप्रैल 02, 2024 0

 आतिशी का दावा: यदि वह और 3 अन्य AAP नेता शामिल नहीं होते, तो ED उन्हें गिरफ्तार करेगी


दिल्ली की राजनीतिक माहौल में हलचल मच गई है जब AAP नेता आतिशी ने कहा कि उन्हें और 3 अन्य AAP नेताओं को ED गिरफ्तार करेगी अगर वे BJP में शामिल नहीं होते। यह घटना न केवल दिल्ली की राजनीतिक दुनिया को हिला देगी बल्कि यह एक अजीब संघर्ष को भी दिखाएगी जो राजनीतिक रंगमंच पर चल रहा है। इस विवाद के बारे में विस्तार से जानने के लिए, हमें इस घटना के पीछे की कहानी को समझने की जरूरत है।


पहले आओ, हम आतिशी के कथन को समझें। आतिशी ने एक बयान में कहा कि उन्हें और 3 अन्य AAP नेताओं को ED गिरफ्तार करेगी अगर वे BJP में शामिल नहीं होते। उन्होंने यह भी दावा किया कि इसका उद्देश्य उन्हें राजनीतिक खेलने के लिए जबरदस्ती करना है। इसके बाद, उन्होंने कहा कि उन्हें भाजपा के साथ शामिल होने की प्रस्तावित प्रक्रिया के बारे में स्पष्टता चाहिए, वर्ना उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा।


इसके बाद, इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच बहस तेज हो गई। भाजपा ने आतिशी के दावे को नकारा और उन्हें धमकी दी कि उन्हें ED के साथ कोई संबंध नहीं है। भाजपा ने यह भी दावा किया कि वे दिल्ली की जनता के विकास और कल्याण के लिए काम कर रहे हैं और उनका ध्यान केवल राजनीतिक खेल में नहीं है।


साथ ही, अन्य राजनीतिक दलों ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर की। कुछ ने आतिशी के साथ खड़े होकर उनका समर्थन किया जबकि कुछ ने उनके दावों को नकारा। इसके अलावा, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी इस मामले की गंभीरता को लेकर अपने विचार रखे।


यहां सवाल उठता है कि आतिशी के दावे का सच्चाईवाद है या फिर यह एक राजनीतिक खेल है। क्या ऐसे दावों के पीछे किसी और की चाल है? या फिर यह सिर्फ एक बड़े राजनीतिक विवाद का हिस्सा है? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए, हमें इस मामले के पीछे की कहानी को समझने की आवश्यकता है।


सच्चाई की खोज में, हमें यह भी जानने की जरूरत है कि एडी ने क्या प्रमाण प्रस्तुत किया है जो उन्हें इस कथन का समर्थन कर सकता है। क्या उन्होंने किसी प्रकार की चालाकी या धमकी की थी? या फिर आतिशी के दावों को खारिज कर दिया गया है? इसके अलावा, आतिशी और उनके साथी नेताओं के समर्थकों की भी राय को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है। क्या उन्होंने इस मामले में किसी प्रकार का बचाव किया है? या फिर उनका कहना है कि यह एक पूरी तरह से राजनीतिक खेल है?


इस विवाद के साथ, यह भी जरूरी है कि हम राजनीतिक दलों के बाहरी दबावों का भी ध्यान रखें। क्या अन्य राजनीतिक दलों ने AAP के खिलाफ किसी प्रकार के दबाव डाला है? क्या वे अपने साथी नेताओं को बचाने के लिए ऐसे दबाव का इस्तेमाल कर रहे हैं? या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक दंगल का एक और प्रकरण है?


अंत में, इस मामले में सच्चाई का पता लगाने के लिए हमें संभवतः उपलब्ध सभी तथ्यों को ध्यान से विचार करना चाहिए। हमें उस सत्य को खोजने की जरूरत है जो इस विवाद के पीछे छुपा है और सच्चाई को सामने लाने के लिए उचित अधिकारिक जाँच की आवश्यकता है। राजनीतिक खेल के मैदान में इस तरह के विवादों को समझना हमारी राजनीतिक सचेतता को बढ़ाता है और हमें समाज की समस्याओं के सामने खड़ा होने की प्रेरणा देता है।

बुधवार, 27 मार्च 2024

क्या नेतन्याहू इजराइल के सबसे खराब मुख्यमंत्री हैं? उनकी प्रशासनिक क्षमताओं का विश्लेषण

मार्च 27, 2024 0



मुख्यमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का कहा गया है कि वे इजराइल के सबसे खराब मुख्यमंत्री हैं। इस प्रस्ताव को लेकर अनेक विवाद और विचार-विमर्श हुए हैं। इस लेख में, हम नेतन्याहू के प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यकाल का विश्लेषण करेंगे और उनकी मुख्यमंत्रित्व क्षमताओं और अयोग्यताओं को विचार करेंगे।


नेतन्याहू को 2009 में इजराइल के प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था, और तब से ही उनका प्रशासन कई विवादों और असमंजस की घटनाओं से घिरा रहा है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने अपने देश के अर्थनीतिक और सुरक्षा क्षेत्र में कई प्रमुख कदम उठाए, लेकिन इनमें से कुछ कदम उन्हें विवादों में डाल दिया।


नेतन्याहू के प्रधानमंत्री बनने के पहले ही उनका विवादित रवैया व्यापक ध्यान केंद्र में रहा है। उनके समर्थनकर्ताओं का मानना है कि उन्होंने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में इजराइल की रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उन्हें ईरान के नामी संदेशवाहक कार्यक्रम के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रशंसा की जाती है, जिसने ईरान की नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम को रोकने के लिए विश्व समुदाय के साथ मिलकर काम किया।


हालांकि, नेतन्याहू के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके कुछ निर्णयों और कदमों पर विवाद उठा। उनके विरोधियों का कहना है कि वे पलेस्टीनियनों के साथ असमंजस और अन्यायपूर्ण नीतियों का समर्थन करते हैं। उन्हें इस बात का आरोप लगाया गया है कि उन्होंने पूर्व इस्राइली सैनिक की सियासी रक्षा की बजाय अपने निजी हितों को प्राथमिकता दी।


नेतन्याहू के प्रधानमंत्रीत्व की अवधि के दौरान, उन्हें अपने अनुयायियों के बीच कई अभिवादन हुए। उन्हें अपनी दक्षता के लिए प्रशंसा की जाती है, लेकिन विरोधियों का कहना है कि उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल में कई आर्थिक और नैतिक अयोग्यताओं का सामना किया गया है।


क्या नेतन्याहू वास्तव में इजराइल के सबसे खराब मुख्यमंत्री हैं? यह प्रश्न एक तात्कालिक और उच्च स्तरीय चर्चा का विषय बना है। उनके समर्थनकर्ताओं और विरोधियों के बीच अलग-अलग राय है। वहाँ कुछ लोग हैं जो उन्हें एक मजबूत और परिश्रमी नेता मानते हैं, जबकि दूसरे उनके कुशल राजनीतिक खेल को प्रशंसा नहीं करते। इस विवाद में, नेतन्याहू के प्रधानमंत्री कार्यकाल की सफलता और विफलता को लेकर विचार किए जाने चाहिए, साथ ही उनकी राजनीतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

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